कितनी अजीब बात है की हम स्वतंत्र है फिर भी गुलाम है , आज़ाद है फिर भी बंधे हुए है। हमारे अधिकारों की तो कमी ही नहीं है परन्तु हमें अधिकार देने वाले है ही नहीं। और इन्ही हालातों के बीच हम आम जनता बने देखते रहते है जबकि हमारी लड़ाई में वो आग तक नहीं है जो आंच भी दे फिर बदलाव की चिंगारी कैसे भड़केगी।
ये विचार है तो अजीब और शायद तर्कसंगत भी न लगे फिर भी सोचती हूँ की जब सतवंत सिंह , बियंत सिंह , और नाथूराम जैसे लोगों की देश को सबसे ज्यादा जरुरत है तो हिंदुस्तान की आम जनता सिर्फ रो रही है। मैं इन हत्याओं का समर्थन नहीं करती हूँ मगर आज हमारे देश में हर राजनेता इन हत्याओं को कर रहा है और हम चुप रह कर इनका समर्थन कर रहे हैं।
इन लोगों ने जिन महान व्यक्तियों को मारा , उनसे जरुर अपार नफरत रही होगी इनकी , मगर हमारे तो जख्म और नफरत उससे भी कही ज्यादा आगे निकल चुकें है फिर भी हमारे में आज तक कोई आग नहीं पैदा हो सकी है।
जैसा आज हो रहा है और जैसा कल हुआ था उस पर अचानक ही ऐसा बवंडर उठता है जैसे की सारी गलतियाँ सुधार ली जाएँगी। हर एक घटना पर इतना शोक व्यक्त हो जाता है इतने कठोर कदम उठा लिए जाते है , जैसे की अब भारत एक दम सुरक्षित है और हर एक नेता गंगा नहा चुका है। ये भी बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात तो ये है की की हमे ये मालूम है की क्या होना है , और हमारे साथ क्या हो रहा है फिर भी हम इंतज़ार कर रहे है। सिर्फ इंतज़ार न जाने किस बात का।
ये विचार है तो अजीब और शायद तर्कसंगत भी न लगे फिर भी सोचती हूँ की जब सतवंत सिंह , बियंत सिंह , और नाथूराम जैसे लोगों की देश को सबसे ज्यादा जरुरत है तो हिंदुस्तान की आम जनता सिर्फ रो रही है। मैं इन हत्याओं का समर्थन नहीं करती हूँ मगर आज हमारे देश में हर राजनेता इन हत्याओं को कर रहा है और हम चुप रह कर इनका समर्थन कर रहे हैं।
इन लोगों ने जिन महान व्यक्तियों को मारा , उनसे जरुर अपार नफरत रही होगी इनकी , मगर हमारे तो जख्म और नफरत उससे भी कही ज्यादा आगे निकल चुकें है फिर भी हमारे में आज तक कोई आग नहीं पैदा हो सकी है।
जैसा आज हो रहा है और जैसा कल हुआ था उस पर अचानक ही ऐसा बवंडर उठता है जैसे की सारी गलतियाँ सुधार ली जाएँगी। हर एक घटना पर इतना शोक व्यक्त हो जाता है इतने कठोर कदम उठा लिए जाते है , जैसे की अब भारत एक दम सुरक्षित है और हर एक नेता गंगा नहा चुका है। ये भी बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात तो ये है की की हमे ये मालूम है की क्या होना है , और हमारे साथ क्या हो रहा है फिर भी हम इंतज़ार कर रहे है। सिर्फ इंतज़ार न जाने किस बात का।