Wednesday, August 7, 2013

hamari ladai me aanch tak nahi hai

कितनी अजीब बात है की हम स्वतंत्र है फिर भी गुलाम है , आज़ाद है फिर भी बंधे हुए है।  हमारे अधिकारों की तो कमी ही नहीं है परन्तु हमें अधिकार देने वाले है ही नहीं।  और इन्ही हालातों के बीच हम आम जनता बने देखते रहते है जबकि हमारी लड़ाई  में वो आग तक नहीं है जो आंच  भी दे फिर बदलाव की चिंगारी कैसे भड़केगी।
ये विचार है तो अजीब और शायद तर्कसंगत भी न लगे फिर भी सोचती हूँ की जब सतवंत सिंह ,  बियंत सिंह , और नाथूराम  जैसे लोगों की देश को सबसे ज्यादा जरुरत है तो  हिंदुस्तान की आम जनता सिर्फ  रो रही है। मैं इन हत्याओं  का समर्थन नहीं करती हूँ मगर आज हमारे देश में हर राजनेता इन हत्याओं को कर रहा है और हम चुप रह कर इनका समर्थन कर रहे हैं। 

इन लोगों ने जिन महान व्यक्तियों  को मारा , उनसे जरुर अपार नफरत  रही होगी इनकी , मगर हमारे तो जख्म और नफरत उससे भी कही ज्यादा आगे निकल चुकें  है फिर भी हमारे में आज तक कोई आग नहीं पैदा हो सकी है। 

जैसा आज हो रहा है और जैसा कल हुआ था उस पर अचानक ही ऐसा बवंडर उठता है जैसे की सारी गलतियाँ सुधार ली जाएँगी। हर एक घटना पर इतना शोक व्यक्त हो जाता है इतने कठोर कदम उठा लिए जाते है , जैसे की अब भारत एक दम सुरक्षित है और हर एक नेता गंगा नहा चुका है। ये भी बड़ी बात नहीं है , बड़ी बात तो ये है की की हमे ये मालूम है की क्या होना है , और हमारे साथ क्या हो रहा है फिर भी हम इंतज़ार  कर रहे है। सिर्फ इंतज़ार न जाने किस बात का।   

achanak laga ki ye andhera ek UuRJA hai..............

ज़िन्दगी में कभी कभी आप अपने आप को बिलकुल अँधेरे में महसूस करते है , एक घना गहरा अँधेरा और तब सारी  उम्मीदें मर जाती है और ऐसा  लगता है जिसके बाद अब कभी सुबह नहीं होगी।

मुझे भी ऐसा ही महसूस होता था मगर अचानक लगा की ये अँधेरा ऐसी उर्जा है जिसमे अनगिनत किरने कैद है। क्यूंकि जब आप अपने आस पास इतना अँधेरा महसूस करते है तो आपकी सारी अन्य इन्द्रियां काम करने लगती है , ऐसे समय में मुझे सब कुछ आसान लगता है क्यूंकि तब उसमे गलत होने की कोई गुंजाईश ही नहीं होती है। काले पर और कौन रंग चढ़ेगा, और फिर जब मैं इस अँधेरे में कुछ वक़्त गुज़ार लेती हु तो मुझे सब कुछ साफ़ दिखने लगता है।

उर्जा से मिलती है शक्ति और फिर इंतज़ार होता है समय की घड़ियों के अपनी जगह से सरकने का। मैं  अक्सर सोचती हूँ  की हर पल कैसे जिया जा सकता है दुखों  के साथ, हर पल एक नई मुसीबत और फिर कोई हल नहीं। मगर अगर इसी अँधेरे में घुल जायेगा आपका दिमाग, तो आते है  नये विचार और फिर से शुरू होता है नया सफ़र , वही पुराना सफ़र मगर नयी शुरुआत के साथ। मगर कुछ समय के लिए क्यूंकि फिर से यही काले अँधेरे की उर्जा लौट के आती है।

मैं इसे ज़िन्दगी की मजबूरी कहती हूँ , वक़्त कहती हूँ , स्वाद कहती हूँ , रंग कहती हूँ , मौसम  कहती हूँ।

Wednesday, April 24, 2013

"WHY THEY DO SO"

Arushi Murder Case

Arushi and Hemraj were murderd in May 2008 and from then court procedure was going on in which her own parents are found guilty.
Its shocking as well as awful to think that parents killed their own child but a question is raise here that "WHY THEY DO SO" ...precisely they get punishment and from here another side of the mirror turns around..

A MArk!!! The punishment is for What they have Done OR The Way They Have Done ?
Arushi Was murdered because her parents love her,,,,,, no doubt they give her all comforts but one huge mistake of that girl and that servant took their and her parents life too.

                                                                              It is to think that Is this a case of cold blooded murder ? or A case of the parents who cannot control themselves seeing their daughter making joke of their love and affection ?

sometimes u miss,,,,,,,,,,,,

हमने अगर मुहब्बत के चेहरे से पर्दा उतारा न होता, तो वो झूठ जो कभी हमारा आशियाँ था ,
आज भी वो हमारा होता।।
बेख़ौफ़ चलते रहते  हर राह पे हम, अगर एक दिन यूँ सच का नज़ारा न होता।
कितने मशगूल थे हम खिलखिलाने में, की जिनके साथ रोने का भी सहारा न होता ,,,,,
कागज़ की कश्ती थी ये जिंदगानी जो डूब ही जानी थी ,,,,,,,,,,अगर इस जहाँ में कोई हमारा ना  होता।।।।।।




Sunday, April 21, 2013

this world is the real "DEATHLY HALLOW"

Sometimes it is very difficult to know that what this world wants with me or what i want from myself. 
i'll keep thinking although it is very difficult to have all the answers from own self,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,How much balanced this world is or from the other sight so much dis balanced.

This is very awkward but true that in this world ,,everything has a COST. whenever you want to be happy you have to pay your loving thing. And again you become sad,, this world is the real     "DEATHLY HALLOW"
Whatever we say, but in reality we hate one another,, love and affection is like pure business and i m also a part of that drama.. so cruel but true.            I always want to run from myself and every time i feel myself trapped which make me learn that we all here to suffer, and become happy is like a day dream..

Sometimes i scared, want to go out of this world,. trying to breath,,,,,and adjusting with the reality that 
' Happiness Cost SOOO Much In This Great World '.

Thursday, March 21, 2013

rango ka tyhaar hai ye ,,,,,,

होली का त्यौहार फिर से आ  गया, ढेर सारे चटकीले रंग मगर अब हम और हमारा समाज इन रंगों की चमक और मिठाई की मिठास से बहुत आगे निकल चुका है। एक तरह से देखा जाये तो अब हम इतने ज्यादा विकसित हो चुके है की हमें होलिका दहन में बुराइयों  का अंत नहीं  बल्कि नफरत की आग नज़र आती है। एक दुसरे से गले मिलकर शिकवे मिटने की जगह ,गले लग कर छुरा भोकने में बदल गई है। खून का रंग सब रंगों से ज्यादा भारी हो गया है जिसमे की हर कोई अपने हाथ रंग लेना चाहता है। 
कुछ समझने की कोशिश में सब आपस में उलझ जाता है,  इसी उलझन में हम और हमारा जीवन ख़त्म होता जा रहा है . जो त्यौहार हमें एक करने के लिए बने है उन्ही से कोई सीख लेकर क्यों नहीं जीना सीखते है हम।
शायद इसी को डेवलपमेंट कहते है जब दिमाग जमीनी बातों को समझना छोड़ देता है और भ्रष्टाचार, आतंक , और लचर सोच का हो जाता है।
आज हम ऐसी जगह पर रह रहे है जहा कोई भी कभी भी किसी को सरे आम मार सकता है, उसका खून तक कर सकता है, घर से निकलते समय लौटने का पता नहीं क्युकी कही पर भी बम हो सकता है, या फिर घर के अन्दर से लेकर बहार तक इस संसार को जन्म देने वाली स्त्री इतनी असुरक्षित है की वो किसी पर भरोसा नहीं कर सकती।
आखिर किस जगह खड़े है हम और इस तरह कब तक जी पाएंगे इसका जवाब ढूढना होगा, हमें ये सब बदलना होगा वरना होली का रंग फीका पड़ जायेगा और नफरत का रंग हमारे जीवन को खून से लाल कर देगा।

Thursday, March 14, 2013

hey ishwar hame maaf kare ,,,hum apraadhi hai

विनाश के देव शिव शंकर को इस महाशिवरात्रि पर मेरा प्रणाम और सभी को बहुत बहुत शुभकामनायें
मैंने अपने जीवन के इतने सालों में कभी भी स्वयं को भक्ति में बहुत लीन महसूस नहीं किया परन्तु मन में हमेशा ये जिज्ञासा रही है की इश्वर के बनाये इस संसार को समझ सकू, की आखिर इतनी बड़ी व्यवस्था चलती किस तरह से है. सिर्फ मेरे ही मन में नहीं परन्तु मुझे ऐसा लगता है की सभी के मान में ये बात जरुर आती है की इस संसार के जीवन चक्र में इतने कष्ट क्यों है ? अगर इश्वर हमारा पिता है तो वो अपने बच्चो को इतने कष्ट में कैसे देख सकता है ? जीवन भर उसकी पूजा करने वाले इतना दुःख क्यों उठाते है ? और व्यभिचारी तथा दुराचारी हमेशा धन संपन्न क्यों होते है ? उन्हें दंड क्यों नहीं मिलता है ?
सोचें तो यह कितना अजीब है मगर सत्य भी , की यह पता ही नही की सही कर रहे है तो परिणाम भी अच्छा  ही होगा। शायद यही वजह है की व्यक्ति निडर होता जा रहा है और लगातार गलत काम करता जा रहा है। ऐसे में इश्वर क्यों नहीं  धरती पर आता है और अपने बच्चो को सदाचार का पाठ पढ़ता है। जैसे हर माता  पिता अपनी संतान को गलत सही के विषय में बताते है उसी प्रकार से वो भी क्यों नहीं आता है .
मगर शायद वो हमसे रूठ गया  है क्यूंकि उसने हमें इतनी खूबसूरत जगह दी रहने के लिए और हमने उसे छिन्न - भिन्न कर दिया और ये उसका अधिकार है की वो हमसे नाराज रहे और तब तक नाराज़ रहे जब तक हम फिर से इस धरती को उसके निवास के लिए सुन्दर न बना दे.
तब हमें अपने सवालों के जवाब स्वयं मिल जायेंगे और हमारा जीवन पवित्र हो जायेगा।
" हे इश्वर हमें माफ़  करें , हम  अपराधी है। हमसे बहुत बड़ी गलती हुई है और अपनी इस गलती को सुधरने के लिए हम हर प्रयत्न करेंगे। और आपको प्रसन्न करेंगे। हमें इतनी शक्ति दे की हम अपनों आप को बदल सकें, और आपका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें"
अगर अपने इस जीवन में इस वादे का एक  भाग भी हम पूरा कर सके तो भगवान् हमें जरुर माफ़ करेगा।
      

Saturday, February 23, 2013

bhagwan se direct contact hai ,,,,,,

प्रवचन एक ऐसा शब्द है जिसका आस्था  से बहुत गहरा सम्बन्ध है, उसी तरह जैसे आस्था से भक्त का और भक्त से इश्वर का। महाकुम्भ में मैं  एक दिन टहलते हुए मनुष्य के विभिन्न रंगों को देख रही थी की अचानक मेरी नज़र एक पोस्टर पे आकर अटक गई . पोस्टर एक बाबा जी का था और बाबा जी की उम्र होगी कोई 3 5 से 4 0 के बीच। मैंने सोचा की इन्हें  इस उम्रे में  बाबा जी या संत बनने की क्या जरुरत पड़ गयी और फिर इस उम्र में इतना ज्ञान कहा से आ गया की दुनिया इन्हें पूज रही है। अक्सर दादी को टी .वी . ऐसे ही महापुरुषों को सुनते देखते थे, सोचा चलो इनकी कम से कम शक्ल अच्छी है इसी बहाने सुन के देखते है की आखिर ये प्रवचन होता क्या  है?
मैं पंडाल में जाके बैठ गई, पंडाल भी आलीशान मतलब महंगा।  बाबा जी की गद्दी बड़ी ऊची ,सोचा जरुर बाबा जी भी बहुत ज्ञानी है। थोड़ी देर बाद पंडाल भर गया मगर बाबा जी नदारद, समझ में आया बाबा जी माहौल बना रहे है। आखिर बड़े बाबा जी है, यही सोच के मैं कुछ देर के लिए बाहर आ गई। 
" देखती क्या हू !!! बाबा जी फ़ोर्चूनर से आ रहे है और फिर धीमे से उनकी बड़ी महंगी गाड़ी पंडाल के पीछे गुम हो जाती है और गेट बंद हो जाता है.
मैं अश्चर्य चकित सी बाहर खड़ी सोचती हू " इतना पैसा एक संत के पास और हर संत के पास। ये प्रवचन है या प्रवचन का धंधा।" --- थोड़ी देर बाद प्रवचन शुरू होता है तो फिर वही नज़ारा, गरीब नासमझ लोगो से पूरा पंडाल भरा था। जिन्हें शायद ही बाबा जी की बात में कोई दिलचस्पी हो या फिर बाबा जी की वही पुरानी  घिसी पीटी  लेकिन ठीक  ठाक  बात को अपने जीवन में उतरने का कोई मन। 
सामने वही उपदेश चल रहा था जिसे हम अपने जन्म से लेकर मरने तक हजारों बार सुनते हैं मगर सिर्फ उन उपदेशो से ये संत करोड़ो  कम लेते हो ये बात गले नहीं उतरती। असल चेहरा तो कुछ और है या फिर यूँ  कहे की शायद सबसे ज्यादा इन्ही लोगों को पता है की इश्वर के नाम का सही जगह पर और सही समय पर उपयोग  कैसे किया जाता है ?  गद्दी पर बैठे तो संत हो गए, और फिर देश की सत्ता को तय करने लगे तो राजनीतिज्ञ हो गए। और उसी से आता है ये करोड़ो रूपया, और हम जैसे मूर्ख लोग सोचते है की भगवान से बाबा जी का डायरेक्ट कांटेक्ट है।  

Tuesday, February 12, 2013

andhvishwas hai kya Ganga??? ya fir............

महा कुम्भ के महा स्नान को मैंने बहुत ही करीब से  महसूस किया, वो एक ऐसा समय था जब संपूर्ण भारत अपनी एकता एवं श्रद्धा के अभिभूत होकर पवित्र गंगा के समीप एकत्र हुआ। मैंने इसके पहले कभी भी गंगा स्नान नहीं किया था हालाँकि गंगा जी के पास जाने का अवसर तो कई बार मिला मगर मैं हमेशा यही सोचती थी की क्या गंगा में केवल डुबकी लगाने भर से ही पाप धुल जाते है और उसके बाद हम और पाप करने के लिए तैयार हो जाते है?  आखिर में गंगा स्नान क्या सिर्फ एक अन्धविश्वास है या फिर अध्यात्म, सिर्फ इतने से क्या हमारे पाप ख़त्म हो जायेंगे या फिर इसके साथ कुछ और भी जुड़ा है जो हम देख नहीं पा रहे है। और इसके बाद जो मुझे समझ में आया वो अद्भुत है।
 4 करोड़ की आबादी वाले संगम पर हर तरफ मैंने देखा की 100 में से 90 % वो लोग है जो निम्न वर्ग में आते है। ऐसे में वो बिना सोचे समझे एक सनक में आते है की मोक्ष मिलेगा , शायद उन्हें इसका मतलब भी नहीं पता होता है। 5% अन्य लोग होते है जो की एक दिन के लिए गंगा जी के लिए अपनी भक्ति क साथ आते है और 5% विदेशी होते है जिनके लिए ये सब बहुत रोमांचकारी होता है।
90% वाली जन संख्या 5 से लेकर महीने भर रुकने की तैयारी से आती है और वे स्वयं की सुरक्षा करने में पूरी तरह से असमर्थ होते है। मैं  इस बात का पक्ष नहीं ले रही की सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है मगर मैं  इस बात को सही भी नहीं मान सकती की इतनी बड़ी संख्या में आये लोगों की अपने प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं होती है बल्कि जब तक आप अपनी सुरक्षा के लिए खुद तैयार न हो तब तक दूसरे किसी के भी भरोसे इतने बड़े खतरे में खुद को कैसे डाल सकते है? इसके साथ ही एक ऐसा प्रवाह आता है जिसको बयान करना बहुत कठिन है। और जब मैं उस वक़्त को याद करती हूँ तो सिहरन सी महसूस होती है, मेरे साथ चलने वालो की चीखे वो बाबा जी जिन्होंने ने मुझे देखा मगर मैं कुछ नहीं कर पायी क्यूंकि अचानक जैसे आँखों  के सामने कुछ था ही नहीं। समझ में नहीं आता की मैं बची कैसे और जो नहीं बचे उनके लिए क्या था गंगा दर्शन ??
मगर इतना जरूर समझ में आया की गंगा माँ है जिसके लिए हम सब बराबर है, हम अपने शरीर को धुल कर माँ को गन्दा कर देते है न की उसका जल अपने ऊपर छिड़क कर अपना मन पवित्र  करते है। मोक्ष सनक से नहीं प्राप्त होता है बल्कि विचारो की शुद्धता से प्राप्त होता है। यही गंगा दर्शन है।

Monday, February 4, 2013

"NO SETTLEMENT :) NO SATURATION"

The best thing about life that you never know what is going to happen next? and i enjoy it the most. Especially the "shocks", sometimes they are the worst happen to your life and sometimes so so also. and if you are lucky then only you get happiness...otherwise start your journey and enjoy the life trip.
                                                                         Its stunning that what is going to happen next and the flavor comes when you nearly know that life is blessing you or cursing you, in both cases suspense is the thrill. Its not obvious that everybody would enjoy it but this attitude help me to overcome........Its my deal with life-
"NO SETTLEMENT :) NO SATURATION"

I enjoy the happiness with lots of thanks to life and quarrel with it when i get furious,,,,,,,,,its personal n i m not going to tell you about our personal discussion.........

Sunday, February 3, 2013

mai tab tak intazaar karungi

 पता नहीं ये शाम इतनी तनहा है या मुझमे ही कुछ सूनापन है। चुपचाप बैठ कर परिंदों का घर लौटना देख रहे है। सब मुझसे कहते है की एक दिन खूबसूरत सुबह तुम्हारी हर चाहत पूरी कर देगी ,खुशियों की बारिश मन भर देगी। मगर मै जानती हू की वो सुबह लम्बी शाम के बाद आयेगी, साथ में हर एक मुस्कराहट का हिसाब लाएगी। कैसे दूँगी मै वो हिसाब क्या होगा ज़िन्दगी का ज़वाब? 
                                  फिर भी मै खुश हूँ की एक दिन  ऐसा वक़्त भी आयेगा जब सब कुछ बदल जायेगा, कोई ख्वाहिश न होगी उस दिन मेरी ,कोई खुशिया जरुरी न होंगी ,कोई चाहत न पूरी होनी होगी, कोई अधूरापन भी न होगा। तब मै  उससे जी भर के मिलूंगी, शायद खिलखिला के  पहली बार हसूंगी। शिकवा होगा की आने में इतनी देर क्यूँकी? 
और फिर कोई शिकायत बाकि न रहेगी .

मै तब तक इंतज़ार करुँगी .................

Thursday, January 31, 2013

bas ek baar un haatho ko............

मन करता है सूनी रहो में अकेले चले जाने का ,जब कोई पीछे से आवाज़ नहीं देगा और हर तरफ गिरती पानी की बूंदे चेहरे को छूकर दिल में सुकून  भर देंगी। गीले रस्ते पर संभल कर चलते हुए भी कुछ कदम लड़खड़ा जाये और फिर मुस्कुरा देना उस लड़खड़ाने पर। याद नहीं कब मैंने हाथो की उन उंगलियों को पकड़कर चलना छोड़ दिया, लड़खड़ाना  छोड़ दिया। अब कदम एकदम सही पड़ते है पर फिर भी उन हाथो की कमी महसूस करते है। 
अब सबकुछ समझ लेते है हम, ना समझना छोड़ दिया। 
याद नहीं कब मैंने हाथो की उन उंगलियों को पकड़कर चलना छोड़ दिया, लड़खड़ाना  छोड़ दिया।
पर आज भी तलाशते है उस आशियाँ को जिसका अधूरा सपना मेरी आँखों से रोज़ बहता है, बीते वक़्त को शायद वापस पाना चाहते है हम। 
कुछ समझना नहीं चाहते है, बस एक बार फिर से लड़खड़ाना चाहते है हम।   

Tuesday, January 29, 2013

jiska tantra uska gantantra

गणतंत्र दिवस के इतने दिन बीत जाने के बाद भी मेरा मन इस विषय पर अबकी बार कुछ  लिखने का  नहीं कर रहा है। ऐसा नहीं है  की इस दिन को मैंने बड़ी धूम से  कभी मनाया हो  पर इतना सूनापन भी कभी महसूस नहीं हुआ, शायद इसलिए क्योंकी संविधान और कानून पर से हमारा विश्वास अब डगमगाने लगा है। पहले लोग सुबह से अपने देश के प्रधानमंत्री के भाषण को सुनने के लिए उत्त्साहित रहते थे, परिस्थितियाँ  तब भी बहुत अच्छी नहीं थी मगर इतनी खराब भी नहीं थी की जीवन को चलाना ही लोगों के लिए मुश्किल हो जाये।
राजनीती पर चर्चाये होती थी और सभी अपने अपने मतों को रखते थे। पर वक़्त कुछ ऐसा बदला की सभ्य समाज ने राजनीती को बिमारी के समान समझ लिया और नेताओं  ने इसे जानलेवा रोग बना दिया जो धीमे धीमे देश कमजोर बना रहा है।
अब तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के द्वारा रटा और कागज पर लिखा वही पुराना भाषण मजाक  के समान हो गया है है। देश परेशांन  है और जनता दुखी, समाज बिखर गया है और इंसान अपने ही लोगों को ख़त्म करने में लगा है ऐसे में कहाँ से आयेगी भगत सिंह की याद और गाँधी जी के पद्चिंह। जिन पर देश को चलाने का भार है वो खुद इतना गिर गए है। अब तो गली मोहल्ले और स्कूलों में भी देश भक्ति के गीतों की आवाज़े नहीं आती  है।  जिस संविधान पर हमें गर्व था उसके सारे नियम पहले ही आरक्षण की भेंट चढ़ चुके है, बची थी सजा तो वो भी इस नियम के अंतर्गत आ गयी है की दोषी किसी पोलिटिकल लीडर का जानने वाला है की नहीं अगर नहीं है तो भी कौन सी पार्टी उसे कैश करेगी।
इन सबके बाद कुछ  बचता ही नहीं है  जिसका फायदा जनता को मिले इसलिए देश की जनता ने गणतंत्र दिवस नेताओं  के नाम कर दिया है।  
                                                सही भी है जिसका तंत्र वही मनायेगा गणतंत्र।
    

Sunday, January 27, 2013

i miss you ma

After a long vacation of 20 days i m back on my work place......... and missing my mummy and my loving little brother so much. i pray to God that no body will live away from his home and feel the pain of separation. From the day i came here i never feel the warm of home , coming back from work and see your mom waiting for you. Children who live with there family are the luckiest...I M JEALOUS.
I have a very beautiful, loving and caring sister who lives with me and i m so habitual of her that i cant even eat or sleep if sometimes she went to meet mummy. "THANK GOD" she is with me. Family is such a big thing in everybody's life, it gives u happiness together and bring tears with separation.
                                 
                                                                                     I m far from my family from approx 8 years searching my destination but instead of all pain i feel happy when mummy is happy to see me growing, its the biggest relief for all my sufferings. i miss you ma and i love you very much.
Hope after this marvelous winter vacations i m able to make me feel better and once again back into my working life......Wahi khana banana, work work then sleep sleep agli subah same routine..
I LOVE YOU MUMMY AND MISS U -COMING BACK SOON ON HOLI 

Friday, January 4, 2013

I LOVE YOU..

Some one said to me that Love is the most unconditional thing in this world but what i think is ......it has only conditions,,,,,and if you are not able to fulfil it. PLz dont Fall in Love.
Its destiny..once you listen to your heart it turns into a final Heart ATTACK....It dosen't mean that i m totally against love But love never give you peace.
At first you get attracted towards sumbody, then you fall in love,,,then u deeply fall in love,,,,then u think you never live without him..And suddenly u come to know that he belongs to somebody else.

Same as life once u r kid go to school,,,then study half of your life and one day,,,,,,,BANG!!!!!!!!
                                                I tried hard for peace,,but still i didn't have and i m trying continuously hoping that one day may at the end..Once i read a line that "Everyone is not meant to stay in your life forever". May be this is TRUE


I LOVE YOU.....  :)