हमने अगर मुहब्बत के चेहरे से पर्दा उतारा न होता, तो वो झूठ जो कभी हमारा आशियाँ था ,
आज भी वो हमारा होता।।
बेख़ौफ़ चलते रहते हर राह पे हम, अगर एक दिन यूँ सच का नज़ारा न होता।
कितने मशगूल थे हम खिलखिलाने में, की जिनके साथ रोने का भी सहारा न होता ,,,,,
कागज़ की कश्ती थी ये जिंदगानी जो डूब ही जानी थी ,,,,,,,,,,अगर इस जहाँ में कोई हमारा ना होता।।।।।।
आज भी वो हमारा होता।।
बेख़ौफ़ चलते रहते हर राह पे हम, अगर एक दिन यूँ सच का नज़ारा न होता।
कितने मशगूल थे हम खिलखिलाने में, की जिनके साथ रोने का भी सहारा न होता ,,,,,
कागज़ की कश्ती थी ये जिंदगानी जो डूब ही जानी थी ,,,,,,,,,,अगर इस जहाँ में कोई हमारा ना होता।।।।।।
No comments:
Post a Comment