मन करता है सूनी रहो में अकेले चले जाने का ,जब कोई पीछे से आवाज़ नहीं देगा और हर तरफ गिरती पानी की बूंदे चेहरे को छूकर दिल में सुकून भर देंगी। गीले रस्ते पर संभल कर चलते हुए भी कुछ कदम लड़खड़ा जाये और फिर मुस्कुरा देना उस लड़खड़ाने पर। याद नहीं कब मैंने हाथो की उन उंगलियों को पकड़कर चलना छोड़ दिया, लड़खड़ाना छोड़ दिया। अब कदम एकदम सही पड़ते है पर फिर भी उन हाथो की कमी महसूस करते है।
अब सबकुछ समझ लेते है हम, ना समझना छोड़ दिया।
याद नहीं कब मैंने हाथो की उन उंगलियों को पकड़कर चलना छोड़ दिया, लड़खड़ाना छोड़ दिया।
पर आज भी तलाशते है उस आशियाँ को जिसका अधूरा सपना मेरी आँखों से रोज़ बहता है, बीते वक़्त को शायद वापस पाना चाहते है हम।
कुछ समझना नहीं चाहते है, बस एक बार फिर से लड़खड़ाना चाहते है हम।
अब सबकुछ समझ लेते है हम, ना समझना छोड़ दिया।
याद नहीं कब मैंने हाथो की उन उंगलियों को पकड़कर चलना छोड़ दिया, लड़खड़ाना छोड़ दिया।
पर आज भी तलाशते है उस आशियाँ को जिसका अधूरा सपना मेरी आँखों से रोज़ बहता है, बीते वक़्त को शायद वापस पाना चाहते है हम।
कुछ समझना नहीं चाहते है, बस एक बार फिर से लड़खड़ाना चाहते है हम।