प्रवचन एक ऐसा शब्द है जिसका आस्था से बहुत गहरा सम्बन्ध है, उसी तरह जैसे आस्था से भक्त का और भक्त से इश्वर का। महाकुम्भ में मैं एक दिन टहलते हुए मनुष्य के विभिन्न रंगों को देख रही थी की अचानक मेरी नज़र एक पोस्टर पे आकर अटक गई . पोस्टर एक बाबा जी का था और बाबा जी की उम्र होगी कोई 3 5 से 4 0 के बीच। मैंने सोचा की इन्हें इस उम्रे में बाबा जी या संत बनने की क्या जरुरत पड़ गयी और फिर इस उम्र में इतना ज्ञान कहा से आ गया की दुनिया इन्हें पूज रही है। अक्सर दादी को टी .वी . ऐसे ही महापुरुषों को सुनते देखते थे, सोचा चलो इनकी कम से कम शक्ल अच्छी है इसी बहाने सुन के देखते है की आखिर ये प्रवचन होता क्या है?
मैं पंडाल में जाके बैठ गई, पंडाल भी आलीशान मतलब महंगा। बाबा जी की गद्दी बड़ी ऊची ,सोचा जरुर बाबा जी भी बहुत ज्ञानी है। थोड़ी देर बाद पंडाल भर गया मगर बाबा जी नदारद, समझ में आया बाबा जी माहौल बना रहे है। आखिर बड़े बाबा जी है, यही सोच के मैं कुछ देर के लिए बाहर आ गई।
" देखती क्या हू !!! बाबा जी फ़ोर्चूनर से आ रहे है और फिर धीमे से उनकी बड़ी महंगी गाड़ी पंडाल के पीछे गुम हो जाती है और गेट बंद हो जाता है.
मैं अश्चर्य चकित सी बाहर खड़ी सोचती हू " इतना पैसा एक संत के पास और हर संत के पास। ये प्रवचन है या प्रवचन का धंधा।" --- थोड़ी देर बाद प्रवचन शुरू होता है तो फिर वही नज़ारा, गरीब नासमझ लोगो से पूरा पंडाल भरा था। जिन्हें शायद ही बाबा जी की बात में कोई दिलचस्पी हो या फिर बाबा जी की वही पुरानी घिसी पीटी लेकिन ठीक ठाक बात को अपने जीवन में उतरने का कोई मन।
सामने वही उपदेश चल रहा था जिसे हम अपने जन्म से लेकर मरने तक हजारों बार सुनते हैं मगर सिर्फ उन उपदेशो से ये संत करोड़ो कम लेते हो ये बात गले नहीं उतरती। असल चेहरा तो कुछ और है या फिर यूँ कहे की शायद सबसे ज्यादा इन्ही लोगों को पता है की इश्वर के नाम का सही जगह पर और सही समय पर उपयोग कैसे किया जाता है ? गद्दी पर बैठे तो संत हो गए, और फिर देश की सत्ता को तय करने लगे तो राजनीतिज्ञ हो गए। और उसी से आता है ये करोड़ो रूपया, और हम जैसे मूर्ख लोग सोचते है की भगवान से बाबा जी का डायरेक्ट कांटेक्ट है।
मैं पंडाल में जाके बैठ गई, पंडाल भी आलीशान मतलब महंगा। बाबा जी की गद्दी बड़ी ऊची ,सोचा जरुर बाबा जी भी बहुत ज्ञानी है। थोड़ी देर बाद पंडाल भर गया मगर बाबा जी नदारद, समझ में आया बाबा जी माहौल बना रहे है। आखिर बड़े बाबा जी है, यही सोच के मैं कुछ देर के लिए बाहर आ गई।
" देखती क्या हू !!! बाबा जी फ़ोर्चूनर से आ रहे है और फिर धीमे से उनकी बड़ी महंगी गाड़ी पंडाल के पीछे गुम हो जाती है और गेट बंद हो जाता है.
मैं अश्चर्य चकित सी बाहर खड़ी सोचती हू " इतना पैसा एक संत के पास और हर संत के पास। ये प्रवचन है या प्रवचन का धंधा।" --- थोड़ी देर बाद प्रवचन शुरू होता है तो फिर वही नज़ारा, गरीब नासमझ लोगो से पूरा पंडाल भरा था। जिन्हें शायद ही बाबा जी की बात में कोई दिलचस्पी हो या फिर बाबा जी की वही पुरानी घिसी पीटी लेकिन ठीक ठाक बात को अपने जीवन में उतरने का कोई मन।
सामने वही उपदेश चल रहा था जिसे हम अपने जन्म से लेकर मरने तक हजारों बार सुनते हैं मगर सिर्फ उन उपदेशो से ये संत करोड़ो कम लेते हो ये बात गले नहीं उतरती। असल चेहरा तो कुछ और है या फिर यूँ कहे की शायद सबसे ज्यादा इन्ही लोगों को पता है की इश्वर के नाम का सही जगह पर और सही समय पर उपयोग कैसे किया जाता है ? गद्दी पर बैठे तो संत हो गए, और फिर देश की सत्ता को तय करने लगे तो राजनीतिज्ञ हो गए। और उसी से आता है ये करोड़ो रूपया, और हम जैसे मूर्ख लोग सोचते है की भगवान से बाबा जी का डायरेक्ट कांटेक्ट है।